एक और दिन

कविता - 

एक और दिन
एक और महीना
एक और साल बीत गया ,

और -
तुम अजनबी बने रहे ,
मैं इंतज़ार में रहा ।

मगर -

तुमने न कभी शिकायत की 
न पहले की तरह लड़े - झगड़े
न मुंह फुलाकर नाराज़ हुए ,

बस -
चुपचाप मेरी जिंदगी से निकल गए ,

ठीक उसी तरह 
जैसे -
पत्ता निकल जाता है शाख से 
नदी निकल जाती है पहाड़ से
सुख निकल जाता है जीवन से
आंसू निकल जाते है आंख से
और , प्रेम निकल जाता है हदय से ।।

            --- बलजीत गढ़वाल 'भारती '

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5 Comments

उम्दा सृजन

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Varsha_Upadhyay

03-Jan-2023 08:16 PM

शानदार

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