एक और दिन
कविता -
एक और दिन
एक और महीना
एक और साल बीत गया ,
और -
तुम अजनबी बने रहे ,
मैं इंतज़ार में रहा ।
मगर -
तुमने न कभी शिकायत की
न पहले की तरह लड़े - झगड़े
न मुंह फुलाकर नाराज़ हुए ,
बस -
चुपचाप मेरी जिंदगी से निकल गए ,
ठीक उसी तरह
जैसे -
पत्ता निकल जाता है शाख से
नदी निकल जाती है पहाड़ से
सुख निकल जाता है जीवन से
आंसू निकल जाते है आंख से
और , प्रेम निकल जाता है हदय से ।।
--- बलजीत गढ़वाल 'भारती '
Shashank मणि Yadava 'सनम'
14-Jan-2023 11:52 AM
उम्दा सृजन
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Varsha_Upadhyay
03-Jan-2023 08:16 PM
शानदार
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सीताराम साहू 'निर्मल'
01-Jan-2023 08:22 PM
बेहतरीन
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